दुनिया के इन नज़रों में कहीं खो रहा हूँ मैं
बेखुदी के नशे में कहीं सो रहा हु मैं
बेखौफ हो गया हूँ इनके अंजामों से
बारिश की बूंदों में भी कहीं रो रहा हूँ मैं..........
मेरे मन की आशियानों में कहीं तस्वीर थी मेरी
मेरे दिल के दीवारों में कहीं तकदीर थी मेरी
खुद को खुद से जुदा करने की कोशिश में
हर शख्स की नज़रों में मजबूर हो रहा हूँ मैं............
ना लज्जा ना सज्जा ना कोई आदत है मेरी
खुद को तकलीफ देना ही इबादत है मेरी
मेरा अक्स मेरी कहानी बयां करता है
खुद को बेपर्दा करने से ही मशहूर हो रहा हूँ मैं...........
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